वन शॉट के रिलीज़ होते ही मेरे मित्र कँवल शर्मा जी एक दम से बुलंदियों को छू चुके थे. मेरे सहित सभी की उम्मीदें कँवल जी से बहुत अधिक हो गयी थी. हम सब इनके अगले उपन्यास का इंतज़ार कर रहे थे.
अगला उपन्यास था सेकंड चांस. उपन्यास के चर्चे होने ही थे, खूब हुए भी. जो एक इमेज बन रही थी वो उम्मीद जगाती थी की उपन्यास बहुत जल्दी ही ब्लाक बस्टर साबित होगा.
पर यह उपन्यास मेरी उम्मीदों के मुताबिक नहीं निकला. उपन्यास की कहानी में मुझे कोई नवीनता नहीं दिखी. उपन्यास नीरस नहीं था पर मैं कुछ और सोचे बैठा था पर वो निकला कुछ और, हालाँकि यह उपन्यास भरपूर मनोरंजन का मसाला लिए है.
लेखक ने इस उपन्यास में डायलॉग्स पर बहुत मेहनत की और बहुत सारी पंच लाइन भी रखी हैं, जो मुझे बहुत पसंद आयीं. जैसे कि
“आदमी कभी इतना झूठा न होता अगरचे औरतें इतने सवाल न करतीं!”
“औरत की ख़ामोशी भी एक जुबां होती है और इसलिए औरत-ख़ासतौर पर जब वो बीबी हो-खामोश रहे तो उसे ज्यादा गौर से सुनना चाहिए.”
उपन्यास इन और इन जैसी कई लाइन्स की वजह से पसंद आया.