पिछले साल में कँवल शर्मा जी की एक क़िताब आई थी ‘देजा वू’.
क़िताब आने से पहले ही काफ़ी मशहूर हो गयी थी. कारण था इसका शीर्षक और किताब का विषय ‘देजा वू’. हिंदी भाषियों के लिए ये शब्द इतना कॉमन नहीं था, इस शब्द के अर्थ की कई जगह चर्चा हुई और सबके मन में एक जिज्ञासा थी इस किताब को लेकर.
क़िताब जब आई तो ज्यादातर लोग जैसा सोचे बैठे थे वैसा उनको मिला नहीं. लेखक ने जिस तरह से देजा वू के कांसेप्ट को दिखाया वो उतने साफ़ सुथरे तरीके से इसे स्पष्ट नहीं कर पाया.
लेखक ने एक प्रसंग दिखाया और फिर कुछ और प्रसंग दिखे और फिर प्रथम प्रसंग से जुड़ा हुआ प्रसंग दिखाया जिसमे इस पूरे प्रसंग को एक पूर्वाभास दिखने की कोशिश की. मुझे लगता है कि अगर लेखक ने किताब के प्रथम दृश्य के बाद ही ठीक अगले प्रसंग में उस पूरे प्रसंग को एक स्वप्न दिखाया होता तो पाठकों को शायद ज्यादा समझ में आता क्यूंकि तब पाठक को सारे दृश्य एक दुसरे से जुड़े हुए महसूस होते और शायद समझना आसान होता. यह मेरी अपनी सोच है.
अगर इस एक बात को छोड़ दिया जाये, तो यह पूरा उपन्यास एक अच्छा थ्रिलर है और जब मैंने इसे पढ़ा तो काफी एन्जॉय किया. कहानी में मनोरंजन के भरपूर साधन थे और अगर इसके टाइटल के अर्थ को लेकर जो बहस कई ग्रुप में हुई वो अगर न होती तो शायद ये लेखक की दूसरी सबसे सफल किताब होती.
मैं लेखक को साधुवाद देता हूँ कि वो अपने हर उपन्यास में एक नया प्रयोग कर रहे हैं और हमारा भरपूर मनोरंजन कर रहे हैं. अभी इनका एक नया उपन्यास ‘जिप्सी’ आने वाला है. इसके लिए कँवल जी को शुभकामनाओं सहित बधाई और मुझे पूरी उम्मीद है कि उसमे भी इन्होंने एक नया प्रयोग किया होगा.
Thanks for these supporting words Shobhit ji.
With this experiment I have learnt my lesson and hopefully will gain from that.
Love you.