Raftar..

जाने क्यों ज़िंदगी की रफ़्तार
थम सी गयी है, 
सरपट दौड़ती कार को 
ब्रेक सी लग गयी है. 
बस थोड़ी दूर रह गयी थी मंज़िल, 
पर क्यों यह बारिश पड़ने लगी है?
यह धरती यह अम्बर, 
सब मेरे लिए हैं, 
जहाँ की सब ख़ुशियाँ, 
मेरे लिए हैं. 
पर क्यों यह बारिश पड़ने लगी है.
उठ. जाग. 
यह बारिश नहीं है. 
यह है तेरी परीक्षा, 
पर तेरी मंज़िल वहीं है. 
ना दूरी बड़ी है, 
ना तेरी शक्ति घटी है, 
तो यह चिंता क्यों आने लगी है?
बढ़ना है आगे, 
इस मंज़िल को छूना है. 
यह मंज़िल सिर्फ़ अब मेरे लिए है. 
जी करता है इस मंज़िल को छू लूँ, 
बिखेरूँ ख़ुशियाँ, 
सबके आँसू ले लूँ.
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